safihasannaqvi.blogspot.com SAFI NAQVI

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

देशभक्ति तथा देश के प्रति प्रेमभाव के बिना कोई भी देश समुन्नत नहीं

सर्वप्रथम समस्त पाठकगण को 72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं,
 इस स्वर्णिम अवसर पर यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने कुछ विचारों को आप लोगों के समक्ष रखने का मौका मिला।
   
 जैसा कि आप भलीभांति जानते हैं कि भारत के लिए गणतंत्र दिवस केवल एक पर्व ही नहीं, बल्कि गौरव और सम्मान का दिन है। यह दिवस प्रत्येक भारतीय नागरिक का अभिमान है। अंगिनत सच्चे देशभक्त, महान नेता एवं स्वतंत्रता सैनानी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, भगतसिंह, चंद्र शेखर आज़ाद, लाला लाजपतराय, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री आदि ने आज़ाद देश बनाने के लिए इन महान विभूतियों ने अंग्रेजों के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ी, जिनके समर्पण को कभी भुलाया नहीं जा सकता। हम ऐसे स्वर्णिम अवसरों पर इन्हें याद करते हुए 21 तोपों की सलामी देते हैं। इनके बलिदान के फलस्वरूप भारत मां को 15 अगस्त,1947 को आज़ादी मिली थी। परंतु उसे स्वतंत्रता का आकार 26 जनवरी,1950 को मिला। क्योंकि इसी दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। हमारा संविधान एक लिखित संविधान है। जिसे बनने में लगभग 2वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा था।
 
सच्ची देशभक्ति व देशप्रेम का जो स्वप्न हमारे वीर सपूतों ने देखा था। वर्तमान में वह धूमिल होता नज़र आ रहा है। देशभक्ति की भावना किसी भी देश की आत्मा होती है। इसकी सुदृढ़ता एवं व्यापकता में ही देश की सम्रद्धि व प्रगति निहित है। जो देश आंतरिक रूप से जितना अधिक सघन और एक है वह उतना ही सशक्त और प्रभावशाली भी होता है। जिस देश के जनसमुदाय में जितनी ही अधिक सद्भावना सहिष्णुता तथा बलिदान भावना है वह देश उतना ही प्राणवंत एवं निरापद है। इसके विपरीत देश-द्रोह, देश के प्रति आंतरिक दुर्भावना, तनाव तथा वैमनस्य की घातक ज्वाला में जलता हुआ देश मरणोन्मुख होता है। वह फूढे जलपात्र की तरह  रिस्ता है, रीतता है और अंततः अपना अस्तित्व ही खो देता है, वस्तुतः देशभक्ति की आधारशिला पर ही तो देश की सम्रद्धि, प्रगति एवं क्षमता की अट्टालिका खड़ी होती है। 
   
आज स्वाधीन भारत के सम्मुख देशभक्ति एवं देश-प्रेम की समस्या अपनी समस्त विकरालता के साथ मुँह बाएं खड़ी है। सम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, आर्थिक विषमता, पृथकतावाद, नस्लवाद, सामाजिक शोषण तथा संकुचित राजनीति इसके कतिपय प्रमुख रूप है। ये वस्तुतः राष्टघाती विघटनकारी तत्व हैं। जिनकी उपस्थिति नें देश के भीतर में विष फैला दिया है। लगता है देशभक्ति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।अपनी बातों को यदि में राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की नीति के सार के तौर पर पेश करूँ, तो वह कुछ इस तरहं होगी।
   
अगर देशभक्ति का मतलब व्यापक मानव मात्र का हित चिंतन नहीं है, तो उसका कोई अर्थ ही नहीं है। जिस तरहं देशभक्ति हमें यह सिखाती है कि व्यक्ति परिवार के लिए, परिवार गाँव के लिए, गाँव ज़िले के लिए, ज़िला प्रांत के लिए, और प्रांत देश के लिए मरे, उसी प्रकार किसी देश को आज़ाद इसलिए होना चाहिए कि वह ज़रूरत पढ़ने पर संसार के हित के लिए मर सकें। और उस देशभक्ति का त्याग करना चाहिए, जो दूसरे राष्ट्रों को आफत में डालकर बड़प्पन पाना चाहती है। 
   
 देशभक्ति मनुष्य का पहला गुण है। इसके बिना वह संसार में सिर उठाकर नहीं चल सकता, अपने राष्ट्र-राज्य के प्रति अनन्य निष्ठा और प्रतिबद्धता की भावना इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने देश की धरती, प्राकृतिक वातावरण एवं संस्कृति से प्रेम करता है, और अपनी परंपरा व इतिहास में महानता की झलक देखते हुए उसपर गर्व करता है। वह अपने राष्ट्र के हित में अपने सुख और स्वार्थ के त्याग करने को सदैव तत्पर रहता है।
   
 "जीना तो उसी देशभक्त का जीना है,
    जिसने यह राज़ जाना,
    काम ही है देशभक्त का स्वराष्ट्र के काम आना।"
     राष्ट्र बनता है, भूमि, जन, संस्क्रति के संघात से, वही देश एक भोगौलिक इकाई है, और अपनी मातृभूमि के प्रति स्वभाविमान प्रकट करना, सम्मान प्रकट करना और वफादार रहना ही देशभक्ति है तथा इसी देशभक्ति के परिणामस्वरूप राज्य की शक्ति का उपयोग करते हुए, राष्ट्रीय पहचान एवं राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना ही राष्ट्र निर्माण है। 
     
राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब यह राष्ट्र अपने जीवन मुल्यों व परम्पराओं का निर्वाहन करने में सफल व सक्षम होगा। और राष्ट्र सफल तब माना जायेगा जब प्रत्येक देशभक्त अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा। और एक देशभक्त सफल तब कहा जायेगा जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र को चरितार्थ करने में सफल होगा। क्योंकि इतिहास साक्षी है कि राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है। हम अपने राष्ट्र के निर्माण में कितना योगदान देते हैं ? हमारी देशभक्ति ही ये तय करेगी। 
      
 यदि आप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में दिए गए अपने मौलिक कर्तव्यों के पालन ईमानदारी के साथ करते हैं तो सही मायनों में आप देशभक्त हैं। फिर चाहे आप नोकर-पेशा हों, शिक्षक हों, या विद्यार्थी आपके कार्य में बरती गई ईमानदारी और सत्यनिष्ठा ही राष्ट्र के निर्माण में योगदान करती है और यही देशभक्ति है जो राष्ट्र की इस भव्य इमारत के निर्माण के लिए चट्टानी नींव का कार्य करती है।
      
 कुरान मजीद में सूरह शम्स,(the sun) की आयत नों व दस में मिलता है कि
     
"कद अफलाह मन ज़क्काह"
" व कद खाबा मन दस्साहा"
 Or "He is succeeded who purifies it,"
  "And he has faile who in stills it."
 
 "बेशक़ वो कामयाब हो गया जिसने नफ़्स को पाकीज़ा बना लिया,"
 "और वह नमुराद हो गया जिसने इसे आलूद कर दिया।"
   
देशभक्ति का मतलब वास्तव में मतलब है कि देश के प्रति प्रेम भाव! देशभक्ति तथा देश के प्रति प्रेमभाव के बिना कोई भी देश समुन्नत नहीं हो सकता। देशभक्ति के लिए देश की संस्कृति के प्रेम अनिवार्य है। देशभक्ति भूभाग के प्रति प्रेम, अनुराग तथा श्रद्धा का भाव स्वदेश की जनता को रचना चाहिए। देश की सम्रद्धि के लिए देश की सद्भावना एवं भावात्मक एकता रखना अनिवार्य है।
    
भारत एक विस्तृत, विकासशील तथा उन्नत व अत्यंत सभ्य देश है। हमारा भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लेकिन अशिक्षा, जातिगत और साम्प्रदायिक भेदभाव, राजनीतिक दलों के अनंतरदायित्वपूर्ण व्यवहार आदि के कारण हम प्रजातंत्र का वह आदर्श रूप प्रस्तुत नहीं कर सके हैं, जो जन-जीवन के लिए मंगलकारी है। हमारा भारत भोगौलिक विविधताओं का देश है, यह भावी भारत फिर से 'वासुदेवकुटुभकुभ' का मधुर नाद कर रहा है, सुनों हर प्रभात की प्रथम रशिम के साथ ही भारतभूमि से मानव-मंगल की कामना के लिए उपनिषद के वाक्य स्वर बनकर उतर रहे हैं। कि
  
 "सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया
  सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कशिचद् दुःख भाग्भवेत्"
  
 "सभी सुखी होवें, सभी रोग मुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पढ़े," 
      
 अंत में अपनी वाणी को विराम देने से पहले ये कहना चाहता हूँ, कि राष्ट्रव्यापी सामाजिक जड़ता व धार्मिक असहिष्णुता, जातिगत अनुदारता भ्रष्टाचार आदि को उतार फेंकना होगा। इस सम्बंध में मिसाइल मैन  हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने कहा था कि "अगर एक देश भ्रष्टाचार मुक्त होता है, तो सुंदर मस्तिष्क का राष्ट्र बनता है"।
        
हमें इसी विचारधारा को आगे ले जाकर ,सबकों मिलकर, संविधान के परिप्रेक्ष्य में रहकर संघर्ष करना है और समय-समय पर राष्ट्रव्यापी स्तर पर ये आह्वान करना है, हम सब मिलकर संकल्प लें... संकल्प राष्ट्र निर्माण का, संकल्प आत्मसम्मान का, संघर्ष राष्ट्र निर्माण का।


 जब राष्ट्र संघर्ष से भर जाता है तभी सच्चे देशभक्त पनपते हैं, और हम हीं वह व्यक्ति हैं, जिनका संघर्ष इस देश के अंधकार को दूर करेगा। 
" जब अपना काफ़्ला अज़्मों यकीं से निकलेगा,
    जहां से चाहेंगे रास्ता वहीं से निकलेगा,
   और जो बाटेगा रोशनी अपनी,
     वह आफताब इसी सरज़मी से निकलेगा।"
       स्वराष्ट्र ज़िंदाबाद, जय हिंद, जय भारत, पुनः इस स्वर्णिम अवसर पर समस्त पाठकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

वर्ष 2020-21 की समस्त परिस्थितियों का गुच्छ बना शब्दों का सार्थक संयोग एवं किसान आंदोलन के प्रति जागरूकता

किसान आंदोलन के प्रति जागरूकता का संदेश
हमारे जीवन में परिस्थितियों के संयोग ही कुछ ऐसे बैठे हैं कि एक यशोगाथा खत्म नहीं होती दूसरी प्रकट हो जाती है उसकी गुत्थी सुलझाना तो दूर, उलझ अवश्य जाती है। वैसे ही जैसे पतंग में बंधी डोर उलझ जाती है, उसका निष्पादन सिर्फ और सिर्फ़ तोड़कर फेककर किआ जाता है। उसके अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही नहीं दिखाई देता, स्वदेश ऐसे ही परिस्थितियों में वर्ष 2020 में उलझा रहा। शिक्षक भर्ती घोटाला हो या कोरोना योद्धाओं का वेतन, चीन भारत-नेपाल का मुद्दा हो या वैश्विक महामारी सबकी गुत्थी उलझी रही, उसका निष्पादन कब होगा ? कैसे होगा? कौन करेगा? ऐसे ही बहुत से प्रश्न, टेलीविजन आदि पर दृष्टिगोचर होते रहे, गति ऊपर होती रही या नीचे, दायें होती रही या बायें पर गतिचक्र अवश्य रहा।
     वैश्विक महामारी को जन्म देने वाली, लाखों बेगुनाहों को मौत की नींद सुलाने वाली, अर्थव्यवस्था को तार-तार करने वाली, रोज़गार, शिक्षा, धार्मिक स्थलों, प्रवासी मज़दूरों व कोरोना का मुद्दा हो या एलऐसी का मुद्दा, गुलवान वैली को निशाना बनाना चाह, चीनी सीमा पर हुए विवाद में भारतीय बीस वीर जवानों की शहादत भी हुुुई, वीर जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंंगे, ये नारा सिर्फ़ नारा ही रह गया जड़े फैलाए चीनी उपकरण का सम्पूर्ण देश बायकॉट करने के नारे लगाता रहा, फ़र्ज़ी मीडिया नीम हक़ीम बनी रही, नीम हक़ीमी को ही रोज़गार का साधन बनाना उसके लिए कोई बढ़ी बात नहीं, मन चिंताओं के मारे उड़ा जा रहा है, चिंता के क्षण अब गहराने लगे हैं, मूर्तिमान अर्थ प्रतीक बनकर खड़े हैं। हृदयगत मन भारतीय जांबाजों  को सलामी दे रहा है। बलिदान की ज्वाला और भी तीव्र रूप ले रही है। कब हम एक सर के बदले दस सर लाएंगे, वह घड़ी कब आएगी ? चीनी उपकरण का खात्मा कैसे होगा ?  अर्थव्यवस्था गहरी दलदल खाई में फंसकर रह गई, भ्रष्टाचार घोटालों से भारतीय मुद्रा को दीमक लग गई, बैंक कर्ज़ दे देकर दीवालिया हो चुके, जो राजस्व आता भी वैश्विक महामारी डकार गई। चीनी उपकरण का विरोध वही नागरिक कर रहा था जो अपनी जेबों में  चीनी धड़कनों को देश की धड़कन, हाथों एवं सीनों को dermi cool, नवरत्न पाउडर की तरह ठंडा किए था। कयास लगाए जा रहे हैं, दिसंबर 2021 तक एक लाख करोड़ की चपत चीन की कमर तोड़ देगी। ban Chinese products, boycott Chinese products
  के नारे बुलंद रहे, चारों और हाहाकर रहा। सवाल यह बनता है कि चीनी उपकरणों का बहिष्कार करना कितना संभव रहा ? चीनी वस्तुओं का बहिष्कार क्यों सोशल नेटवर्किंग तक 
सीमित रह गया ? ज़मीनी स्तर पर वह क्योंं नहीं आया ? दो चीनी कम्पनी हुआवे व हुसान ( इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेंट बनाने वाली कंपनी) ने तो कहीं गाड़ी छूट न जाए की तर्ज़ पर ही यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलोपमेन्ट अथॉरिटी को अपनी दरखुआस्ते भी भेजदीं फुरती से मंज़ूर भी हो गई।  लोकल वोकल का सपना साकार कब होगा ? चीनी कम्पनी, श्याओमी, ओप्पो, लिवो, हुसान, कूलपैड, लेनोवो, रियलमी, आदि उपकरणों की तर्ज पर ऐसे ही उपकरण अपने देश में बनाए जाएं, वे हम क्यों नहीं बना पाए, हम कब तक गमछे, बरसातियां, पीतल, तांबा, ताले-चाबी आदि बनाने पर गर्व करते रहेंगे।

  आज क्यों विदेशी कम्पनियों को कम ब्याज़ दर पर ऋण, फोकट के भाव की ज़मीन, सस्ती बिजली, व जीएसटी में छूट देकर किसे प्रोत्साहित एवं किसे हतोत्साहित किया जा रहा है।अब रहा मजदूर, तो वह पेट भरने के एवज में ही गुलामी करने को तैयार हो जाएगा। आज श्रम कानूनों में बदलाव विदेशी कंपनियों के लाभ के लिए किए हैं, न कि भारतीय मजदूरों के हित के लिए, किसान आंदोलन ही क्यों करता ? न्यूनतम समर्थन मूल्य यदि उसको दे दिया जाता वो सर्द मौसम में ज़मीनी स्तर पर उतर कर अपना कारोबार परिवार छोड़कर मौत को दावत क्यों देता, कृषि प्रधान देश के अन्नदाता यही किसान हैं जो आज तन मन से अपने हक़ की लड़ाई सविधान के परिप्रेक्ष्य में लड़ रहा है, किसान की मांग कोई निजी मांग नहीं, वह गरीब निर्धन की पुकार को आगे लाना चाहता है। वह न्यूनतम मूल्य चाहता है। खेत में अनाज बोकर आपको खिलाना चाहता है। आपकी हमारी 136 करोड़ की भूख को अपनी भूख समझता है, वह भूखा है, सम्मान का, आदर्श का, वह इस सर्दी मैं टीन की चादर के नीचे माइनस डिग्री टेम्प्रेचर के चलते पैदल हज़ारों मील पदयात्रा कर आया है। मौत की नींद सो जाएगा अन्नदाता और सो भी गया, कभी आत्महत्या आर्थिक विभीषिका के कारण, तो कभी आंदोलन के कारण, आज क्यों भूल गए यही वो दाता है जिसके कारण पेट की ज्वाला शांत होती है, दिन-रात खेत पर रहकर कभी जानवरों के भय से, तो कभी अधिक वर्षा, ओलावृष्टि के भय से, तो अब न्यूनतम  समर्थन मूल्य के भय से अपनी जान दाव पर लगाकर खेत में अनाज पैदा करता है। अंतरात्मा आज हमारी सर्द हवाओं के झोंके से कहीं सो मील दूर चली गई, क्यों वह आंदोलन कर्ता के पास तक नहीं पहूंची? उसकी आवाज़ को दबाने का प्रयास हम आज क्यों कर रहे हैं ? क्या उसकी आवाज़ उसकी पुकार संविधान की हवेलना करती है? किसान धरती माँ के रक्षक हैं, भिक्षक नहीं साहिब, वो आपसे नराज़ नहीं, कृषि बिल से भी आपत्ति नहीं आपत्ति यदि है तो संशोधन न करने से, कृषि जीवन भारत के किसान का हल, नींद, भूख, दो बेलों की कथाभर है साहिब, कोरोना की हाय-हाय नें वैसे की किसान मध्यवर्गीय व्यक्ति निम्नवर्गीय व्यतिक्रम को तर-बतर कर दिया, जब वह कोसोंमील इसी किसान की उगाई मेहनत का फल खाने के लिए पदयात्रा करके अपने निर्धारित स्थान पर आया, ये कैसा न्याय है जिसके लिए सुप्रीमकोर्ट, हाईकोर्ट, मोन्न है, कृषि प्रधान भारत आज लाखों की संख्या में सड़कों पर निकलने के लिए तैयार हो गया। श्रमिकों को उसका श्रम देदो साहिब, उसको दिया श्रम उसकी तिज़ोरी भरने के लिए नहीं, आपकी मेरी उसकी, अपनी,अनाज की पुनः पैदावार कर आपके शरीर को तर करने व अपने शरीर को दिन-रात चक्की के पॉट्स की तरहं पिसकर भूख को शांतकर इसी चक्रव्यूह की धुरी को निरंतर प्रयासरत रहता है। आज उसके प्रयास के फलस्वरूप ही हम जीवित हैं, हम आप आज जीवनशैली के अर्थ को लेकर वाद-विवाद संवाद करते रहते हैं। उसका अर्थ ही खत्म हो गया होता यदि किसान प्रयास नहीं करता। हम किसान के पुत्र-पौत्र परपौत्र होने के बावजूद भी उसकी इच्छाओं, मर्यादाओं, आशा- आकांक्षाओं को कलाँकित करने पर तुले हुए हैं ऐसा क्यों? सभ्य संसार में आज भी उपनिवेशवाद, साम्रज्यवाद, सामन्तवाद आदि अपनी जड़े फैलाए हुए है, जब देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, उस समय भी ऐसा होता था। मजदूरों से अधिक कार्य लिया जाता और श्रमिकों को उनका श्रम अल्पमात्रा में दिया जाता। आज हमें ये बताने की आवश्यकता क्यों हुई? क्यों हमे तद्ययुगीन परिस्थितियों को संज्ञान में लाने की भूमिका अपने मनमस्तिष्क में पिरोने की आवश्यकता महसूस हुई ? ज़मीदारी, महाजनी सभ्यता, पूंजीवादी सत्ता सब गोरों की देन है साहिब, इनका मिशन निर्धन को और निर्धन बनाने का, उनपर अत्याचार, शोषण करने का रहा। तभी तो मध्यवर्ग उतपन्न हुआ। वही परिस्थितियां आज सभ्य संसार में ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। इनका निस्तारण कब हो? कैसे हो ? 

      2020 निकल गया, 2021 तेज़ी से दैनंदिन जाता प्रतीत हो रहा है, सभी की गुत्थी उलझी हुई है, जमीनीस्तर की संघर्षशील गति कम, साहिब के फैसले अटलांटिक महासागर पर जाकर शान से भेद ले रहे हैं, उनके फैसले अटल दर अटल हैं किसानों की सेवा को हाथ अभी कोसोंमील हैं अटलांटिक महासागर वाले साहिब जब तक नहीं आते तब तक स्थितियों के मेले ऐसे ही रहैंगे, संविधान की जीत होना निश्चित है। वो दिन आएगा जब हमें हमारे अधिकारों की कुंजी हमारे आपके हाथ में आएगी। संविधान के पितामाह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा कहे गए तीन मंत्र सर्दियों की शीतलहर भरी हवाओं के माध्यम से चलकर मन मस्तिष्क से उतारकर आपके समक्ष दृष्टिगोचर करने का सार्थक प्रयास करता हूँ, बाबासाहेब के मंत्र शिक्षित बनो संघर्ष करो व संगठित रहो। इसी विचारधारा को लेकर  चलना होगा तभी देश में एकता आएगी।
     उन्होंने हमेशा समाज के दबे, कुचले तथा गरीब लोगों के हित के लिए कार्य किया। संविधान बनाकर देश में कानून स्थापित किया। आज हमें अलग-अलग जाति को छोड़कर सबको एक धागे में पिरोकर रहना होगा। न कोई सिख है न ईसाई, न हिंदु न मुस्लिम, धर्म है केवल तो मानवता, सिर्फ़ मानवता मानवता होगी तभी एकता होगी, इसी विचारधारा को शांति स्वभाव, शालीनता, भाईचारे के साथ संविधान की रूपरेखा को संज्ञान में रखकर आगे बढ़ना है। राहत इंदौरी  किया ख़ूब लिखकर गए,
      सभी का खून है यहां की मिट्टी में शामिल किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी ही है।

शनिवार, 26 दिसंबर 2020

संघर्षशील व्यक्तित्व के धनी पुरुष के जीवन का अनमोल रत्न बनी स्मृतियाँ

लगभग दो माह पूर्व की दुखदायी घटना आज फिर स्मृतियों को ओढ़कर सुरक्षित हो चली अभी एक ज़ख्म हल्का न हुआ था कि दूसरा ज़ख्म और दे गया, किसी ने खूब लिखा है कि अजीब साल रहा ये, किसी के सपने ले गया, किसी के अपने ले गया।  दो माह में दो भाइयों का जाना दुखदायी घटना का परिचय देता है। उनके दिल से मालूम करें, जिनके साथ ये घटना घटित हुई दो माह में दो संघर्षशील व्यक्तियों का जाना अपने आप में एक बड़ी क्षति है। पर किया कर सकते हैं, जीवन-मृत्यु प्रकृति का नैसर्गिक नियम रहा है, ऐसा प्रकाश जो वास्तव में मृत होकर भी स्मृतियों को जीवित रखे हुए है, वो इमाम का प्रकाश कभी मोहम्मद की यादों से, तो कभी अली से, हुसैन से तो कभी शौक़त से तो कभी ज़हूर से तो कभी शमा बनकर रौशनदर रौशन होता रहता है, ऐसा प्रकाश जो जीवनपर्यंत अपने संघर्षशील व कठिन परिश्रम से आज भी स्मृतियों को इबादत की ओढ़नी बनाय हुए है, वो सुरक्षित है, आज भी सुरक्षित, क्योंकि उनका कठिन परिश्रम ही उनके सत्यवादी व्यक्तित्व को सफ़लतम रूप देकर चंद्रमा की तरहं सुरक्षित स्थान पर इबादत की ओढ़नी ओढ़कर अपना इज़हार व इकरार करता है, जिसकी आरज़ू हयात रहकर क़ायनात के वो लम्हें अपने किये वादों के दीप से हमेशा-हमेशा रौशनदान बनकर कयामत तक जीवनपर्यंत चलते रहैं,  यही अभिलाषा, यही कामना है।
सर्दी की तेज़ गलनगति स्मृतियों की गति के समक्ष मध्यम पड़ती दिखाई देती है, स्मृतियों भरा चिंतित -मन उनके प्रकाशमय जीवन को जीवित किए हुए है, स्मृतियों से भरा चिंताश्रीत हृदय उभर-उभर कर शब्दों के माध्यम से प्रकट होना चाहता है, परंतु भावुकमन इस कार्य को करने नहीं देता, ऐसे पुरुष इमाम ज़िया को अपने लेखन के शब्दों के गुच्छ से उनकी स्मृतियों को एक स्थान पर रखने का सार्थक प्रयास किया गया है। सर्वप्रथम नम आंखों से भावपूर्ण श्रधांजलि अर्पित व समर्पित करता हूँ , संघर्षशील सत्यवादी व्यक्तित्व के धनी पुरुष जो सदैव सत्य के मार्ग पर चलकर, कामयाबी के समस्त रूपी क्रियाकलापों की लकीर को महसूस करता हुआ, चन्द्रमा के प्रकाश से इबादत की ओढ़नी ओढ़कर सुरक्षित जा मिला, वो अपना इक़रार व इज़हार अपने व्यक्तित्व से इस सभ्य संसार को बता गया जो कि ताक़यामत हयात बनकर प्रकाशमय होता रहेगा, उस संघर्षशील, सत्यवादी महापुरुष ने अपना समस्त जीवन कठिन परिश्रम में लगा दिया, वह बाल्यवस्था से लेकर व्रद्ध अवस्था तक समस्त कठिनाइयों का सामना करता हुआ, ऐसे सत्यवादी, सफ़लतम पुरुष जो सदैव चंद्रमा की तरहं चमकता रहा, अपने कर्तव्यों का भलीभांति निर्वाहन कर चौबीस अक्टूबर की मध्यरात्रि उस सूर्योदय का अंत हो गया, परंतु उसका प्रभावशाली व्यक्तित्व स्मृतियों में सदैव अपना इक़रार व इज़हार ऐसे ही करता रहेगा, आख़िर क्यों न कराए, जिसनें सदैव कोल्हू के बैल की तरहं कठिन परिश्रम किया, लेकिन जब उस बाग़ के फल खाने का समय आया तब वह इस संसार को अलविदा कह गया। जिसके लिए उसने तन-मन-धन से निडर होकर जिसने शिक्षा के ज्ञान रूपी सागर के लिए अपना भविष्य दाव पर लगाकर कामयाबी की लो सदैव सत्यवादी मन से जलती रहने के लिए उसने अपने पुत्रों को रात-दिन परीक्षा का समय आने पर उनके समक्ष उपस्थित रहते हुए अपनी नींद, भूख प्यास की चिंता न करते हुए आशा का दीप लेकर यूहीं बैठा रहा, जिसने उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिये अपने प्रकाशरूपी, सत्यवादी ,व सफ़लतावादी पुरषों को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविधालय व नोयडा के किसी कॉलेज में शिक्षा के ज्ञानरूपी सागर से सदैव सुरक्षित रखा, यहीं तक नहीं उसने अन्य सदस्यों को भी शिक्षा के समस्त क्राइटेरियो को सचेत रहकर करने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित किया, उसका बताया एक मंत्र स्मृतियों में घुलनशील हो रहा है, खिलाए सोने का निवाला, देखे दुश्मन की नज़र से, ये कहावत सदैव युवाओं व आने वाली पीढ़ी के उज्वल भविष्य के लिए प्रेरित करती है, इस मंत्र का इज़हार व इकरार करना मनुष्य के समस्त किर्याकल्पों को नवीन तरंगें देने में कोई कोताई नहीं करेगा। उसने ज्ञानरूपी सागर के प्रकाश को अंधकार से दूर कर निरंतर जलते रहने के लिए ऐसे केंद्र की स्थापना की जहां सेमिनार, कार्यशाला, मजलिस आदि का कार्यक्रम कर युवाओं की स्तिथि बेहतर हो, उनका भविष्य उज्जवल हो, मध्यवर्गीय, निम्नवर्गीय व्यक्ति जो आर्थिक विभीषिका से ग्रस्त हैं, उनके लिए शिक्षा के नवीन द्वार खुले, ऐसे स्थान की स्थापना वो अपने जीवनकाल में करके गया। वह सदैव मध्यरात्रि देश-विदेश से जुड़ने के लिए प्रत्येक दिन टीवी, सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े रहते, जब कभी भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता व्यापार के समस्त किर्याकलाप बंद कर दिए जाते, अपने देश भारत के प्रति सदैव इन्हें प्रेम रहा मैच देखते भारत के जीतने पर मिठाई मंगाई जाती, और साथ ही निरंतर संसार में व्याप्त गतिविधियों का ज्ञान लेकर उसपर समीक्षा करते कोई बात समझ में न आनेपर बार -बार मालूम करते परंतु इसी बीच उन्हें कोल्हू चला रहे मजदूरों का ख्याल प्रत्येक दिन आता वह अपने किसी पुत्र से कहते कि शौकीन का खाना दे आओ, वह तुरंत जाते परन्तु देर रात निरंतर स्वयं जाते उनके पानी-बीड़ी की चिंता होती वह सुलभ कराते, इसी तरहं जीवनचर्या का क्रम तेल के कोल्हू के व्यापार के रूप में आरंभ होता, दोपहर का भोजकर एक पान का टुकड़ा मुँह में रख, फिर इसी तरहं कोल्हू पर रहकर शाम लगभग 5:30 बजे घर वापस आते, बच्ची हयात व क़ायनात जो अभी लगभग दो से तीन वर्ष की आयु प्राप्त की हैं, उन्हें गोदी में लेते प्यार-दुलार करते, फिर टीवी खोलकर समाचार सुनने लगते, अपने व्यापार में हमेशा सचेत रहे, परंतु किसी व्यापार मैं कभी मिलावट नहीं की, उसमें आर्थिक लाभ न होते देख, आटे का प्लांट लगया परंतु आर्थिक लाभ मिलावट के पश्चात ही मिलना स्वभाविक था लेकिन मिलावट नहीं की इसका व्यापार ख़त्म करना लाभकारी समझा, फिर पुनः तेल का कोल्हू लगाया, तन-मन-धन से वह कभी पीछे नहीं हटे, गरीबों के हमेशा मसीहा बने रहे, दाय हाथ से देते बॉय हाथ को न पता चले ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी रहे, इमाम ज़िया, लेकिन कोरोना काल की इस मनहूस घड़ी ने इस उदारतावादी, सत्यवादी संघर्षशील व्यक्ति का जीवन प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष रूप में बदल दिया, उनकों हमेशा सामज के प्रति उदारता एवं राजनीतिक किर्याकलापों से घृणा रही, नागरिकता संशोधन का काला कानून, दिल्ली दंगे, कोरोना महामारी आदि उनके जीवन को निगल गए परंतु उनके व्यक्तिव को कभी भुलाया नहीं जाएगा, वो प्रकाश कभी सत्य, तो कभी इबादत की ओढ़नी का सफ़लतम रूप लेकर सुरक्षित रहेगा, तो कभी हयात व क़ायनात बनकर अपना इज़हार व इकरार करता रहेगा और कराता रहेगा।
                 ये लेख मामा की स्मृतियों को सादर समर्पित

रविवार, 7 जून 2020

परिस्थिति जनक वैश्विक सत्य घटनाओं पर आधारित हृदय को स्पर्श करती स्मृतियाँ

टिड्डी हमला, कोरोना हमला, सरकारी हमला, नेपाल-भारत हमला, चीन-भारत व अमेरिकी हमला,अम्फान हमला, निसर्ग हमला, जॉर्ज फ्लॉयड पर हमला, हमला दर हमला, भूख-प्यास पर हमला, मानवता पर हमला, हथिनी पर हमला, टेलीविज़न पर हमला, चारों दिशाओं में हमला। लॉकडाउन बच्चों वाली गिनती 1'2'3'4 धक्का दिया केमिस्टार, गेम खेलता रहा, खेलता रहेगा। किंग बनेगा प्रवासी मज़दूर,और दूर होगी उसकी उदासी। मसीहा बनकर आ गया है सोनू सूद भय्या और उनकी टीम, स्मृतियाँ ताज़ी हुई, याद आया बचपन, वह लड़कपन जो बीस वर्ष पूर्व जब में प्राइमरी कक्षा में था। मेरे मित्र, बुलबुल परिवार इसी तरहं का खेल खेला करते थे।


  गिनती आज भी वही है, परिवर्तन आया तो व्यक्ति में,उसके विचारों में, चिंतन में...आरंभ हुआ अनलॉक वन, आगे भी टू, थ्री, फ़ॉर, फाइव... क्योंकि स्वदेश टॉप फाइव की सूची के अनक़रीब आ चुका है, यदि ये सूचकांक आज अर्थव्यवस्था को लेकर होता तो आज हमारा मुल्क अमरीकी पत्रिका फोर्ब्स, गिनीज़ बुक के साथ-साथ ज़मीनी स्तर पर भी अपना नाम दर्ज करा चुका होता। प्रशंसा भरे ट्वीट जैसे ईद- दीवाली और अन्य शुभ अफसर पर दीर्ष्टिगोचर होते हैं, वैसे ही दिखाई पड़ते। अभी तक दुर्भग्यवश हम शिक्षा, रोज़गार, अर्थव्यवस्था, गरीबी, भुखमरी, पेयजल, उद्योगजगत, व्यापार, आदि में अपना स्थान उच्च स्तर का न बना सके, संक्षेप में उल्लेख करता हुआ आगे बढ़ता चलुं, जब पांच वर्ष पूर्व की बात संज्ञान में आ ही गई।


 2000-2015 तक सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य (millennium devlopment goals-MDG) एजेंडा खूब ज़ोरो शोर से देश-विदेश में प्रचलित हुआ। परंतु हुआ किया,
    इनके लक्ष्य भुखमरी, गरीबी, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा हासिल करना, कई बीमारी से निजात दिलाना और भी ऐसे-ऐसे लक्ष्य उसने भी लॉकडाउन, की तरहं अनलॉक के रूप में छलांग लगाई, MDG से बाहर आकर फिर आया नया एजेंडा, आठ लक्ष्यों  का लक्ष्य अब सतत विकास लक्ष्य (sustainable development goals SDG-2030) के रूप में 17 लक्ष्य लेकर सामने आया।
    ये सम्पूर्ण विश्व से गऱीबी के सभी रूपों की समाप्ति, सभी उम्र के व्यक्तियों के स्वास्थ्य सुरक्षा, स्वस्थ जीवन को बढ़ावा, देशों के बीच और भीतर असमानताओं को कम करना, समावेशी और न्याय संगत गुड़वत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने, रोज़गार के अफ़सर देने की मांग को अन्य देशों के साथ गारंटी कार्ड लेकर आया। MDG लक्ष्यों को 2015 तक कोई भी सफलता प्राप्त नहीं हो सकी सुनने में आता है, इसका मुख्य कारण यह था कि इन सभी आठ लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तय नीतियों का क्रियान्वयन सशक्त नहीं था। खैर जाने दो अब सतत विकास लक्षय 2030 एजेंडे से भारत एक विकसित तथा समृद्ध राष्ट्र बन सकता है। सभी 17 लक्ष्यों की प्राप्ति होगी, वह दिन भी दूर नहीं, और दस वर्ष हैं जब छब्बीस वर्ष पश्चात टिड्डीदल ने अपना आतंक मचाया है और उसको हम प्राकृतिक आपदा घोषित करने व वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श करने की तैयारी कर रहे हैं, सतत विकास लक्ष्य भी पूरा होगा। स्वदेश एक विकसित तथा समृद्ध राष्ट्र बनेगा।...
     
     लड्डन मियां जाने दो ये ख्वाबों-ख्यालों की बाते, हम तो इतना जानते हैं, हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई, क्या बोलते मियां भाई, ज़मीनी स्तर की बात में जितना दम-खम है वह किसी बात में नहीं आज-कल जो सम्पूर्ण विश्व में सिक्का चल रहा है वह है बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता सोनू सूद भय्या का, चिलचिलाती धूप में खड़े होकर, अपनी भूख-प्यास को प्रवासी आश्रयहीन मज़दूरों की भूख-प्यास के समान समझना, देखना, महसूस करना, फिर उन्हें बस के साथ-साथ चार्टर्ड विमान द्वारा निस्वार्थ तन-मन-धन से उनके गंतव्य पर सुरक्षित भेजने का शुभारंभ करना।
प्रवासी मजदूर जिंदगी के चौराहे पर खड़ा था, किधर जायँ, क्या करें, सारी संभावनाएं हाथों छूटे शीशे की तरहं चकनाचूर हो गई थी। और मौत के दिन चढ़े थे।


इतने में ट्विटर, टेलीविजन, फ़ेसबुक, वाट्सऐप, आदि सोशल मीडिया आइकन पर  बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता सोनू सूद भय्या का वह ट्वीट जो प्रवासी मज़दूरों का मसीहा बनकर उभरा। प्रवासी मज़दूरों के चेहरों पर, सूखे-पपड़ी भरे होंठो पर प्रसन्नता की आशा की किरण जो लम्बी अवधि से गुम-सुम थी, पूँजी भरे ह्रदय उनकी प्रसन्नता को कैद किये थे फिर से लौट आई, इस बार संतोष क़रीब आया, खूब आया, बेशुमार आया। ट्वीट कुछ यों था कुछ-कुछ संज्ञान में है, क्योंकि मेरी सारी प्रसन्नता और उसमें निकले आँसू निसर्ग तूफ़ान के साथ समस्त संसार में घुल-मिल गए थे सोनू सूद भय्या का नम आंखों से वह ट्वीट दृष्टिगोचर है..


 "चलो घर छोड़ आऊँ, मैं आपका मित्र, आपका भाई, आपका बेटा,आपका साथी सोनू सूद, मेरे प्यारे श्रमिक भाइयों और बहनों अगर आप मुंबई या अन्य राज्यों में हैं और आप अपने आश्रय  पर जाना चाहते हैं तो कृपया इस नम्बर पर कॉल करें-1800121371 या अपना नाम एवं पता वॉट्सऐप करें नंबर है-9321472118



प्रवासी मजदूरों का मन इस समय हर थकावट से दूर, हर चिंता से मुक्त, रंगीन उमंगों से भरा पूरा था,  आखिर क्यों न हों, लड्डन मियां। सोनू सूद भय्या एवं उनकी टीम मजबूरों के पपड़ी भरे होंठों पर मुस्कान लाने, उन्हें उनके निर्धारित स्थान पर भेजने का जो शुभकार्य इतनी गर्मी के बावजूद कर रहे हैं, वास्तव में उनकी ईद अब आई, कुछ आशा की किरण दिखाई दी। सोनू सूद भय्या के भाग्य से ये सुख का दिन आया, मेरी संतोषी बहन भी अब खुश है, कहती है, भगवान ने भी मेरी अरज सुनली जो सोनू सूद मसीहा के रूप में सामने प्रकट हो गए, अपने आश्रय पर सुरक्षित स्पेशल हवाई जहाज़ से अपने घर सुरक्षित आ पहूंची। दोनों बच्चों को देखकर मुस्कान की चपलता स्थिर मग्न होकर दाँतों को मोतियों की सी मनमोहिनी आब दे रही है। सभी लोग प्रसन्न हैं।


    केरल में फंसे 167 आश्रयहीन प्रवासियों को बाकयदा चार्टर्ड विमान से उड़ीसा, उत्तराखण्ड के  173 प्रवासी को स्पेशल विमान से उनके क्षेत्र सही सलामत पहुंचाया। आगे भी वह ऐसी चार्टर्ड विमान की व्यवस्था करेंगे, हज़ारों मज़दूरों को अबतक वह बस सेवा, के माध्यम से महाराष्ट्र के ठाणे से कर्नाटक गुलबर्गा के लिए एवं अन्य राज्यों के लिए हवाई सेवा के द्वारा सुरक्षित घर पहुंचा चुके हैं।

   
 
   हवाई चप्पल वाले आश्रयहीन मजबूर हवाई जहाज़ में बैठकर उनकी संतोष की लहरें निसर्ग, अम्फान की लहरों से कहीं अधिक लहरे ले रही थीं, दूसरी तरफ एक बहन अपने भाई से मिलकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एवं प्रत्येक दयावान व्यक्ति, साथ में नेतागण भी अप्रत्यक्ष रूप से बधाई एवं शुभकामनाएं सोनू सूद को दे रहे हैं। हर वह प्रवासी मज़दूर जो भूल गया था जीवित रहना, भरे-पेट रहना,परिवार से मिलना और दुःख-सुख में उनका साथ देना। पैदल चलकर घर जाने पर मजबूर प्रवासी(migrant workesrs) मज़दूरों की सहायता को सोनू सूद विलन की भूमिका निभाते-निभाते आज सुपर हीरो बन बैठे, आखिर क्यों न बने, ज़मीनी स्तर पर आकर 47 डिग्री टेम्प्रेचर होने के पश्चात वह ऐसा शुभकार्य का शुभारंभ किए, जो मुंबई से अलग-अलग राज्यों के लिए न सिर्फ बस सेवा चलाई, परंतु अन्य राज्यों से बाकायदा परमीशन भी लिए, सम्पर्क नंबर भी सार्वजनिक किए, परंतु ट्विटर वाले साहिब आज भी साहिब का किरदार बख़ूबी ढंग से निभा रहे हैं, आशा भी है आगे भी निभाते रहेंगे।


 क्योंकि उन्हें आता है, चुटकी से कपड़ा साफ़ करना, उनका शुभ कार्य होगा तब जब एयर कंडीशनर स्टेज, फूलों के आभूषणों से सजा हुआ डाइज़, उसके पीछे दो से चार गनर, पीछे 16 बाई 12 का बना हुआ फिलेक्स, शानदार शब्दों से गुथा हुआ नाम, दो उंगलियों से दिखाया हुआ विक्ट्री वाला चित्र, नाम, पदनाम, सामने पढ़ा मखमली रूई से बना हुआ सोफासेट, उसपर आसीन होंगे सात से आठ सेठ, गले में मालार्पण करते हुए, दो से तीन बेरोज़गार, सामने मूकदर्शक बने, चिलचिलाती धूप में यही आश्रयहीन प्रवासी मज़दूर, जो आज ज़मीनी स्तर का यथार्थ रूप देख रहा है, वह ये क्षण कभी स्वप्न में भी नहीं भूल सकता। यही उनकी चर्चा-परिचर्चा, वाद-विवाद, संवाद झेलता है, चाय पर ,गली-कूचों में बैठकर बड़ी  शान ओ -शौकत के साथ  एक-दूसरे से वार्तालाप करता है।
   
 
   लेकिन सोनू सूद जैसे व्यक्ति ने उनके मुँह पर तमाचा मारा है, कि ये प्रवासी मज़दूर भी किसी माई के लाल हैं, उन्होंने प्रवासियों के लिए ही नहीं कोरोना योद्धाओं के लिए भी अपना वी.आई. पी होटल देकर उनकी सहायता करकर, उनके प्रति सहानुभूति प्रकट  कर देश-विदेश को ये संदेश दे दिया कि ये मजबूर हैं, इनकी मजबूरी का लाभ हम नहीं उठा सकते,


     सोनू सूद कोरोना की समस्या से ही नहीं , निसर्ग साइक्लोन, हो या फिर कोई व्यक्ति जो आर्थिक तंगी की मार झेल रहा है सभी के लिए भगवान बन चुके हैं, सोनू सूद, दिन-रात ज़मीनी स्तर पर आकर सोनू सूद भय्या ने मजबूरों की सहायता की है, लड्डन मियां, ज़मीनी ताकत, चिलचिलाती धूप में कार्य करना, मजदूरों के हक़ में समझौता शाना ब शाना खड़े होकर होना और एयर कंडीशनर में बैठकर हुए समिट समझौते में इतना ही अंतर होता है, जो कार्य हम अन्य देशों से मिलकर अभी तक नहीं कर सके, सालों पर साल चढ़ जाते हैं।  फिर भी परिणाम उभर कर नहीं प्रकट होता। ज़मीनी स्तर पर आकर काफ़ी लक्ष्यों को सोनू सूद भय्या जैसे महान योद्धा ने कर निभाया, स्वयं और उनकी टीम कोरोना एवं निसर्ग में फसें व्यक्तियों के लिए भी मसीहा बनकर सामने आकर अपना कार्य बखूबी ढंग से सफलतम रूप में परिणामस्वरूप कर रही है। वह तीस हज़ार व्यक्तियों को निसर्ग तूफ़ान से पहले ही सुरक्षित स्थान पर भेजना का कार्य भी किए।
 
      अब देखने की बात ये है कि इंडस्ट्री से कई सेलीब्रिटी जो उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे हैं, क्या वह ज़मीनी स्तर पर आकर नारियल फोड़कर बसों से  असहाय आश्रयहीन मजबूरों को उनका निर्धारित  स्थान दिला पाएंगे ? या फिर वह चिलचिलाती धूप में चल रहे प्रवासी मज़दूरों के प्रति अपनी रूखी-सूखी सहानुभूति हैशटेग के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड करते रहैंगे। उनके फ़ॉलोअर्स उन्हें लाइक, दिल वाली इमोजी भेंट करते रहैंगे। क्योंकि उनकी नज़र में ये भी एक खूबसूरत, निस्वार्थ काम है। हो सकता है उनकी दृष्टि मैं ये कार्य शायद लाखों प्रवासी मज़दूरों के दुखों को कम कर रहा हो।
         

   आज देश-विदेश का प्रत्येक अक्लमंद नागरिक, सोनू सूद जैसे महान योद्धाओं को सैल्यूट कर रहा है, न वह धर्म देखता है, न वह जाति, न वह रंग-रूप देखता है, वह देखता है, मज़लूमों को, आश्रयहीन, भूखी-प्यासी जनता को, फुटपाथ पर सोई बेबस, लाचार जनता को वास्तव में लड्डन मियां यही लाखों प्रवासियों के दुखों को कम करने की महत्वपूर्ण औषधि है।
                  
              
          

शनिवार, 23 मई 2020

क्या पूँजीवादी हृदय आश्रयहीन प्रवासी मज़दूरों के आंसुओं की क़ीमत चुका पाएगा?

 अब घुटन सी होने लगी है, इस महामारी ने निकम्मा बना दिया,किसी को भूखा सुला दिया, किसी को रुला दिया,भूख से तड़पा दिया, मुसलमानों ने दफना दिया, हिंदुओं ने जला दिया।
     
   
    इस महामारी का सत्यानाश जाय,कहाँ से कलमुँही ये आई हैगी, फिर से लॉकडाउन की खबर सुनी अठारह मई, से बढ़ाकर इकतीस मई कर दिया गया, एक के बाद एक ऐसे ही कुछ भयावह तस्वीर दृष्टिगोचर हुईं, कोई तीन,कोई सात, कोई दस, कोई बारह दिन की भूख के शिकंजे में आश्रयहीन परिवार के साथ जकड़ा हुआ है, प्रवासी मजबूर पास आती हुई मृत्यु को भयानक,भयानकतर, भयानकतम रूप से देख-देखकर, भय और चिंता के जड़ स्वरूप को अनुभव करते हुए शून्य से लड़ता चला आ रहा है,
         

       मन विचलित हो उठा,केवल समीप थी   उदासी...केवल उदासी, संतोष सैकड़ों मील अम्फान चक्रवाती तूफान की लहरों के साथ भाप बनकर उड़ गया था,ये वही संतोष था,जो आज से छप्पन दिन पूर्व अपने घर-परिवार के साथ अपने कारोबार में लीन रहता था--आज वह सभी कुछ लुप्त हो गया,पता नहीं किसकी नज़र लगी कि देखते-देखते सम्पूर्ण देश आँकड़ों की अंताक्षरी खेलने लगा।
         

         सायंकाल का समय था, खबर उड़ीसा के तूफान से उड़कर प्रवासी मज़दूरों के कानों तक आ पहुंची, जो संतोष अम्फान तूफान के कारण कोसोंमील दूर चला गया था एक बार फिर वह समीप आया।
     

         बात कुछ यूं थी कि यातायात के कुछ साधन  प्रवासी मजबूरों के लिए निर्धारित स्थान बॉर्डर समीप से जाने की घोषणा की गई थी, प्रवासी मज़दूरों में नई उमंग, नई तरंग..ऐसे मानों कि जैसे तीन दिन पहले ही ईद हो..छप्पन दिन की समस्या से आहत आश्रयहीन  प्रवासी मज़दूरों  का सीना छप्पन इंच का हो गया, घबराहट कुछ देर के लिए नदी के किनारे कगार पर खड़े प्रकृति-शोभा निहारते हुए लहरों से वार्तालाप करने लगी।
       
    संतोष उन प्रवासी मज़दूरों पर मालार्पण कर रहा था कि आज मेरी संतोषी बहन के साथ-साथ समस्त प्रवासी मज़दूर अपने गंतव्य पर सुरक्षित जा सकेंगे,मेरी संतोषी बहन भी अपने दो नन्हें बालकों को कुछ पल के लिए नेत्रों के मल को कोरोना के साथ चिता में जला देगी, फिर से वही परिवार होगा, वही ख़ुशी होगी, वही आश्रय होगा, माँ की मामता क्या होती है ? ये तो वह बालक ही जानते हैं,जो मेरी संतोषी बहन के जितना प्रेम मुझसे भी करते हैं, ये पूँजी से भरे ह्रदय क्या जानें? माँ का दर्द क्या होता है? जो मखमली चादर ओढ़कर एयर कंडीशनर में लेटकर सिगरिट-सिंगार का सेवन कर आराम से टेलीविज़न पर चाय की चुस्की लेते हुए औपचारिकताओं के माध्यम से फ़र्ज़ी प्रतिक्रिया देकर मिनटों में छूमंतर हो जाते हैं। हमेशा से इनकी बातें मेरे ऊपरी चेतना को केवल स्पर्श भर करती हुई निकलती चली जाती हैं।
     

 इतना ही कहना था..खट से मोबाइल की घण्टी बजी, फोन पर थी संतोषी बहन,उसने कहा संतोष देखना सुना है कि हज़ार बस का जाना रद्द हो गया, और एक जून से दो सौ ए.सी.ट्रेन चलाई जाएंगी, फ़ोन कट कर दिया, क्योंकि संतोषी की रोने की सिसकियाँ  सुनाई दी जाने लगी थीं।
       फिर मन में उचाट पैदा हुई, वह उमंग,वह तरंग जो आई भी थी,चिड़िया की तरहं फुर हो गई, तुरंत, मनु से कहा ज़रा टेलीविजन चालू करो,टेलीविजन चालू हुआ, देखा जो संतोषी बता रही थी,वह बात सच निकली, ख़बर कुछ इस तरहं थी कि पहले समस्त बस चालकों की कोरोना निगेटिव रिपोर्ट, धर्मलस्क्रीनिंग व नामों की सूची सरकारी विभाग भेजी जाय, पाँच सौ बस नोएडा व गाज़ियाबाद बॉर्डर पर भेजी जायँ।
       

       खट्ट से लड़खड़ाते हाथों की उंगलियों से पकड़ के टेलीविजन का वायर खींच दिया,मनु से कहा संतोषी को फोन लगा, फोन लगाया गया,फिर से वही सिसकियाँ, संतोष बोला सही थी संतोषी बहन जो आपने बात बताई, इतना कहना था कि इस बार में भी अपने आप को नहीं रोक पाया। आँखों से टप..टप जनसैलाब निकल पढ़ा संतोषी भी सिसकियाँ लेकर रो रही थी, मैंने एक गहरी निःश्वास ढील दी, फ़ोन कट किया।


       एक बार फिर मन विचलित हुआ, कहने लगा इस संकट की घड़ी में भी राजनीति के झूठ-फरेब की छाया उन आश्रयहीन असहाय प्रवासी मज़दूरों पर कोरोना से कहीं अधिक संक्रमण का कार्य कर रही है। दुत्कारता हूँ, ऐसी झूठ-फरेब की राजनीति को.. जो निर्धन आश्रयहीन प्रवासी मज़दूरों की पुकार न सुन सके,उन्हें अपना निर्धारित स्थान न दिला सके, उनके लिए कोई ऐसी सहायता सुलभ न करा सके, इतना ही कहना था,कि संतोषी के साथ-साथ बहुसंख्यक  प्रवासी मजबूरों की सिसकियों के साथ निकला आंसुओं का जनसैलाब अम्फान तूफ़ान की लहरों के साथ सेकड़ों मील दूर जाकर बंगाल की खाड़ी से जा टकराया, छप्पन दिन की भूख-प्यास ने फिर एक बार उसी पटरी पर ला खड़ा कर दिया, छप्पन दिन के भूखे शरीर और चिंताक्षत मन से ह्रदय का यह भार संभल न सका, वह बेदम हो गया,शरीर में वह ताव न रहा उसने पैदल चलने का निरंतर प्रयास किया, कुछ देर चला ही था कि सामने से तेज़ गति से आ रही मनहूस घड़ी ने उसे तार-तार कर दिया,भूख से लतपत शरीर कुछ ही मिनटों में रक्त से लतपत हो गया, कुछ समय पूर्व भी ऐसा हुआ था..तन का भोजा ढोते-ढोते वह भी इस मनहूस घड़ी का शिकार हुआ था, उसके पास थी सिर्फ वह सूखी रोटी जो उसने पदयात्रा करते समय अपने पास जमा कर रखी थी, इसलिए कि वही गुलकोज़ बनकर भूख से बेदम शरीर में अपना कार्य कर रही थी, आज फिर ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना सामने आई, मुंबई के किसी गाँव में प्रवासी मजबूरों की पूरी-पूरी कालोनियां खाली करा ली गईं।
     

   अभी तक कोई भी आशा की किरण नहीं दिखाई दे रही, वह सुबह वह संध्या नहीं आई, जो संतोष वापस आता, आज भी वही सिसकियाँ, वही दुख, वही भूख, वही आँकड़ों का संग्रहण, प्रदर्शनदो हज़ार से चार हज़ार, चार हज़ार से, छप्पन हज़ार, छप्पन हज़ार से नव्वे हज़ार,लाख, दस लाख, करोड़, दस करोड़, अरब,पद्म,शंख, महाशंख-इसके माने सब गिनती खत्म। तब तो बस प्रलय-एकदम प्रलय!  फिर क्या? पूँजीवादी ह्रदय स्तब्ध

शनिवार, 16 मई 2020

अमृतलाल नागर की दृष्टि में 'सत्तावनी क्रांति'

1857 का समय भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। ये ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के अवध क्षेत्रों में चला। इस 'सत्तावनी क्रांति'  का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी-छोटी झड़पों एवं आगज़नी से हुआ था। परंतु देखते-देखते ही इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अंत भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश शासन आरंभ हो गया, जो अगले दस वर्षों तक चला।
     

      विभिन्न इतिहासकारों ने 'सत्तावनी क्रांति' के स्वरूप में अलग-अलग विचार प्रतुत किए है। कुछ इतिहासकार इसे 'सैनिक विद्रोह' मानते हैं, तो कुछ इसे ईसाईयों के विरुद्ध हिन्दू-मुस्लिम का षड्यंत्र मानते हैं। कुछ विद्वान बुद्धिजीवी, मार्क्सवादी विचारक एवं अमृतलाल नागर 'सत्तावनी क्रांति' को धार्मिक युद्ध नहीं मानते। उनका मानना है कि कुछ स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे हुए, लेकिन उनके आधार पर 1857 के संघर्ष का मुल्यांकन करना तर्कसंगत नहीं है। प्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक कार्ल मार्क्स ने लिखा था कि.."यह पहली बार है जबकि सिपाहियों के रेजीमेंटों ने अपने युरोपीय अफसरों की हत्या कर दी है.....आपसी विदेशों को भूलकर मुसलमान और हिंदू अपने अपने स्वामियों के विरुद्ध एक हो गए हैं।"1 प्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा ने कार्लमार्क्स के विचारों से सहमति व्यक्त करते हुआ कहा है कि..."1857 की लड़ाई में हिन्दू और मुसलमान मिलकर अंग्रेजों का मुकाबला कर रहे थे, मार्क्स के लिए यह उसकी राष्ट्रीयता का प्रमाण था। फूट डालो और राज करो की नीति राष्ट्र को तोड़ने वाली थी, इस नीति के विरोध में हिन्दू और मुसलमान मिलकर लड़ रहे थे। यह क्रांतिकारी नीति राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने वाली थी।"2
           

        जिस तरहं "सत्तावनी क्रांति' को हिंदू-मुसलमान साथ-साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े उससे यह स्पष्ट होता है कि 'सत्तावनी के संग्राम ने भारतीयों के अंदर राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया। अमृतलाल नागर ने अपने संस्मरण 'गदर के फूल में' में लिखा है कि-"अयोध्या के दंगे के बाद अयोध्या के हिन्दुओं का मुसलमानों के साथ-साथ लड़ना निसन्देह इस बात का प्रमाण है कि वे लोग स्थानीय मुसलमानों से अधिक विदेशी ईसाइयों को अपने धर्म का शत्रु मानते थे।.....अमीरअली और हनुमान गढ़ी के बाबा रामचरणदास एक साथ अंग्रेजों से लड़े।"3
           

   अतः कहा जा सकता है कि सत्तावनी का संग्राम कोई धार्मिक विद्रोह नहीं था। भारतीय इतिहास में 1857 के संग्राम का महत्वपूर्ण स्थान है।अमृतलाल नागर 'गदर' शब्द को क्रांति के पर्याय के रूप में उल्लेख करके स्पष्ट कर देते हैं कि 'गदर' का अर्थ केवल 'सिपाही विद्रोह' से नहीं लगाया जा सकता है। क्रांति शब्द स्वयं में व्यापक अर्थ ग्रहण किए हुए है। क्रांति किसी भी कारण से हो सकती है हालांकि क्रांति के प्रस्फुटित होने के पीछे हमेशा शासन के प्रति असंतोष होता है।
               

     अमृतलाल नागर 'गदर के फूल' नामक संस्मरण में लिखते हैं कि...."सन् सत्तावन का सिपाही विद्रोह ऐसा गजब का था कि एक बार सारे उत्तराखंड में व्याप्त हो गया। सिपाहियों के जोश में अफीमची विलासी और अपने मिथ्या जोश में संगोतियों के सिर पर रण पूजने की कायरता रखने वाले, फूट में पड़े सामंतों की भुजाओं में क्षात्र-रक्त हुमक पड़ा। यह क्या मामूली बात है? सिपाहियों के परिवार वाले और उनके जैसे लाखों ग्रामीण जन जिस ज्वाला में खेलते-खेलते बढ़ गए, उस गदर और सिपाही विद्रोह को कोटि-कोटि प्रणाम।"4
         

     अवध क्षेत्र का जिला बाराबंकी 'सत्तावनी क्रांन्ति' के संग्राम में अपने वीर-बांकुरों के योगदान के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सर्वप्रथम अमृतलाल नागर ने शहीदों के सम्बंध में जानकारी एकत्र करना यहीं से प्रारंभ किया। 'गदर के फूल' में  अमृतलाल नागर इस क्षेत्र के प्रमुख वीरों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट करते हैं कि-"भिलाैना निवासी श्री हरिदत्त पांड्य ने खट से नाम गिना डाले। तारापुर के बेनी पाठक लड़े,ठाकुर औतार सिंह लड़े, हसौर के रामसेवक पांड्य लड़े।"5
     

      'सत्तावनी क्रांति' में दरियाबाद का नाम भी लिया जाता है। वहां पर अंग्रेजों एवं ठाकुर रामसिंह के बीच युद्ध हुआ था। मुझे पता चला है कि किले से दो मील दूर वह गोराबाग उर्फ़ गौराबैरक है जहाँ सिपाही  विद्रोह आरंभ हुआ था और बहुत से गोरे मारे गए थे। अंग्रेजों से रामसिंह की गोराबाग में लड़ाई हुई परंतु रामसिंह पराजित हूए। इस प्रकार के इतिहास में '1857' के संग्राम से सम्बंधित युद्ध के अधिकांश उदाहरण देखने को मिलते हैं। अमृतलाल नागर लिखते हैं कि--"दरियाबाद के राय अभिरामबली, सिकरौरा  के ज़मीदार अजब सिंह और उनके साथी अल्लहाबख्श, ये सभी सतावनी के वीरों में थे अल्लहाबख्श कयामपुर के आगे बारिनबाग रोड पर अंग्रेजों से लड़ते हुए मारे गए।"6
                   

     ऐसा लगता है कि 'सत्तावनी क्रांति'  में आम जनता के मन में अपने जन-नायकों के प्रति घोर श्रद्धा थी। इसलिए इस संग्राम में लखनऊ पतन के पश्चात बेगम हज़रतमहल, युवराज बिरजीश कदर, नाना घोंडपंत, राणा वेणीमाधव सिंह, बोंडी के राजा हरदत्त सिंह, तथा गोंडा नरेश राजा बख्श सिंह गुप्त रूप से यहीं एकत्र हुए थे। नवाबगंज, बेहरामघाट आदि स्थानों पर देशभक्त वीरों ने मोर्चे लगा दिए थे ताक़ि पीछा करने वाली अंग्रेजों की सेना को मार्ग में ही रोका जा सके।इन वीर-बांकुरों का योगदान अपने नेताओं से कम नहीं है। इन्होंने अपने नेताओं की अंग्रेजों से रक्षा करते हुए अपने प्राणों को ज़िले के अमर शहीद ठाकुर बलभद्र सिंह का उल्लेख करते हैं-"नवाब गंज की लड़ाई का अमर शहीद तैंतीस गांवों का साधारण ज़मीदार चेहलारी का ठाकुर बलभद्र सिंह सत्तावनी क्रांति का ऐसा अनुपम वीर और आचरण शील युवक था कि उसके विदेशियों द्वारा वर्णित कारनामों से किसी भी भारतीय का मस्तिष्क गौरव से ऊंचा उठता है।"7
               

    इसलिए आज भी बाराबंकी जिले के गांव-गांव में असंख्य जन की वाणी, पर चहलारी के अमर शहीद बलभद्र सिंह का नाम मौजूद है।
                  "चलहारी को नरे निजदल मो सलाह कींन,
     तोप को पसारा जो समीपै दागि दीना है।
     तेगन से मरि मारि तोपन को छीन लेते,
      गोरन को काटि काटि घीधन करे दीना है।
     लंदन अंग्रेज़ तहा कम्पनी की फौज बीच,
      मारे तरवारिन के कीच करि दीना है।
      बेटा श्रीपाल को अलेद्रा बलभद्र  सिंह,
       साका रैकवारी बीच बाँधि दीना है।"8
             

    उपरोक्त लोकगीत से अमर नायक ठाकुर बलभद्र सिंह की लोकप्रियता का जनमानस को पता चलता है। जिसने अंग्रेजों के समक्ष न तो हथियार ही डाले, और न ही आत्मसमर्पण किया। अठारह वर्ष के अमर  नायक बलभद्र सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के कारण अपने प्राण गवा दिए। अमृतलाल नागर लिखते हैं कि-"अठारह वर्ष के नौजवान बलभद्र सिंह ने तो समर में अनोखी वीरता दिखलाते हुए  अवध की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण निछावर किए थे।"9
         

      अमृतलाल नागर ने 1857 के संग्राम की  स्मृतियों को बटोरने के लिए फैजाबाद की भी यात्रा की। वह लिखते हैं कि-"फैज़ाबाद का नाम 'गदर' के इतिहास के मौलवी अहमदुल्ला शाह के कारण बहुत  प्रसिद्ध हो गया है।"10.... लेकिन मौलवी अहमदुल्ला शाह वह स्थान न पा सका, जो उसे मिलना चाहिए था। इन्होंने पूरे हिंदुस्तान में खासतौर से अवध क्षेत्र के जन नेताओं के बीच सम्पर्क सूत्र का काम किया। संग्राम के प्रारंभिक समय में शाह की कोई दिलचस्पी नहीं थी। परंतु जब अपने साथियों पर अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को देखकर इनके मन में ब्रिटिश सरकार के प्रति विद्रोह का भाव जागृत हुआ। अमृलाल नागर ने कहा है कि-"हिन्दुओं के प्रति हो सकता है कि प्रारंभ में इन्हें लगाव न रहा हो, परंतु बाद में इनकी नीति बदल गई थी। वे अंग्रेजों के समान हिंदू रजवाड़ों के साथी भी हो गए थे। बेगम हज़रत महल की सरकार से भी उन्होंने जहाँ तक अंग्रेजों को हराने के प्रश्न था, समझौता किया।.......फैजाबाद, रायबरेली, सीतापुर, लखनऊ और उन्नाव जिलों में मौलवी साहब के तूफानी दौरे हुआ करते थे। कहते थे इनके भाषणों से आग बरसती थी।"11
               

   अतः निःसंकोच कहा जा सकता है कि पूरे अवध क्षेत्र में आमजनमानस को मौलवी अहमदुल्ला शाह ने ही ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए तैयार किया। यही कारण है कि स्वयं कौशल एवं संगठन क्षमता को देखकर भयभीत हो गई थी। इनके अतिरिक्त फैज़ाबाद जिला मंगल पांडेय से सम्बंधित होने के कारण भी जाना जाता है। मंगल पांडेय को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दी थी। तभी फैज़ाबाद की सैनिक छावनी में सैनिकों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था। तत्कालीन अंग्रेज़ कर्नल मार्टिन की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए अमृतलाल नागर अपने संस्मरण में लिखते हैं कि-"मंगल पांडेय को जब फांसी दे दी गई है तब से समस्त भारत की सैनिक छावनियों में ज़बर्दस्त विद्रोह प्रारंभ हो गया है।"12
                       

      1857 के संग्राम में अवध के क्षेत्रों में सुल्तानपुर के अतिरिक्त गोंडा, बहराइच, सीतापुर, रायबरेली, हरदोई, उन्नाव, लखनऊ आदि का महत्वपूर्ण स्थान रहा। उपरोक्त के अतिरिक्त नवाबों, सामंतों एवं ज़मीदारों के  बरअक्स आम जनता ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया, और शहीद भी हुए कुछ ऐसे वीर योद्धा भी थे जिन्होंने 'सत्तावनी क्रांति' के नेताओं को अपने यहां शरण दी। अवध क्षेत्र में इस संग्राम का केंद्र बिंदु लखनऊ था। जिसकी चर्चा करते हुए अमृतलाल नागर लिखते हैं कि-"30 मई से जो लखनऊ में सैनिक विद्रोह आरंभ हुआ तो अवध में जगह-जगह आग भड़क उठी। सीतापुर, मुहम्मदी, औरंगाबाद, गोंडा, बहराइच, मल्लापुर, फैज़ाबाद, सुल्तान, सलोन, बेगमगंज,दरियाबाद सभी जगह अंग्रेज़, स्त्रियों, बच्चों एवं पुरषों को बड़े-बड़े संकटों का सामना करना पड़ा। अवध का कोना-कोना अंग्रेजों की प्रभुसत्ता से मुक्त हो गया था, केवल उसकी राजधानी लखनऊ पर उसका कब्ज़ा था परंतु यह कब्ज़ा एक तरह से बेमानी था।"13
       

     अतः कहा जा सकता है कि 1857 का संग्राम भारतीय जनता का ब्रिटिश सरकार के प्रति संगठित प्रतिरोध था और यह प्रतिरोध मौलवी अहमदुल्ला शाह और चेहलारी के ठाकुर बलभद्र सिंह, राजा वेणीमाधव बख्श, राजा नरपत सिंह आदि के नेतृत्व में किया गया था।'सत्तावनी क्रांति' में  अपने बलिदानों के द्वारा  आम-जनता के ह्रदय में 'राष्ट्रीय चेतना' का बीज प्रस्फुटित किया। इतिहास में इनके योगदान को भले की विस्म्रत कर दिया जाए, लेकिन लोकमानस की चेतना में ये हमेशा जीवित रहेगा।



संदर्भ सूची:-
 (1) मार्क्स और ऐंगल्स:भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, 1857, पृष्ठ,5

(2) रामविलास शर्मा: भारत में अंग्रेजीराज और मार्क्सवाद, पृष्ठ, 178

(3) डॉ शरद नागर: अमृतलाल नागर रचनावली, (भाग..6), राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, नई दिल्ली, संस्करण 1991, पृष्ठ, 71

(4) वहीं पृष्ठ, 146

(5) अमृतलाल नागर:गदर के फूल, सूचना विभाग, लखनऊ, पृष्ठ,12

(6) वहीं, 15

(7) वहीं,43

(8)वहीं, 11

(9) वहीं 1

(10) डॉ शरद नागर: अमृतलाल नागर रचनावली, (भाग..6), राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, नई दिल्ली, संस्करण 1991, पृष्ठ 48

(11) वहीं 49

(12) अमृतलाल नागर: गदर के फूल, सूचना विभाग, लखनऊ, पृष्ठ,75

(13) वहीं, पृष्ठ,240
                   
                         
                                                   
                                             



  •     

देशभक्ति तथा देश के प्रति प्रेमभाव के बिना कोई भी देश समुन्नत नहीं

सर्वप्रथम समस्त पाठकगण को 72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं,  इस स्वर्णिम अवसर पर यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने कुछ विचारो...