सर्वप्रथम समस्त पाठकगण को 72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं,
इस स्वर्णिम अवसर पर यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने कुछ विचारों को आप लोगों के समक्ष रखने का मौका मिला।
जैसा कि आप भलीभांति जानते हैं कि भारत के लिए गणतंत्र दिवस केवल एक पर्व ही नहीं, बल्कि गौरव और सम्मान का दिन है। यह दिवस प्रत्येक भारतीय नागरिक का अभिमान है। अंगिनत सच्चे देशभक्त, महान नेता एवं स्वतंत्रता सैनानी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, भगतसिंह, चंद्र शेखर आज़ाद, लाला लाजपतराय, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री आदि ने आज़ाद देश बनाने के लिए इन महान विभूतियों ने अंग्रेजों के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ी, जिनके समर्पण को कभी भुलाया नहीं जा सकता। हम ऐसे स्वर्णिम अवसरों पर इन्हें याद करते हुए 21 तोपों की सलामी देते हैं। इनके बलिदान के फलस्वरूप भारत मां को 15 अगस्त,1947 को आज़ादी मिली थी। परंतु उसे स्वतंत्रता का आकार 26 जनवरी,1950 को मिला। क्योंकि इसी दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। हमारा संविधान एक लिखित संविधान है। जिसे बनने में लगभग 2वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा था।
सच्ची देशभक्ति व देशप्रेम का जो स्वप्न हमारे वीर सपूतों ने देखा था। वर्तमान में वह धूमिल होता नज़र आ रहा है। देशभक्ति की भावना किसी भी देश की आत्मा होती है। इसकी सुदृढ़ता एवं व्यापकता में ही देश की सम्रद्धि व प्रगति निहित है। जो देश आंतरिक रूप से जितना अधिक सघन और एक है वह उतना ही सशक्त और प्रभावशाली भी होता है। जिस देश के जनसमुदाय में जितनी ही अधिक सद्भावना सहिष्णुता तथा बलिदान भावना है वह देश उतना ही प्राणवंत एवं निरापद है। इसके विपरीत देश-द्रोह, देश के प्रति आंतरिक दुर्भावना, तनाव तथा वैमनस्य की घातक ज्वाला में जलता हुआ देश मरणोन्मुख होता है। वह फूढे जलपात्र की तरह रिस्ता है, रीतता है और अंततः अपना अस्तित्व ही खो देता है, वस्तुतः देशभक्ति की आधारशिला पर ही तो देश की सम्रद्धि, प्रगति एवं क्षमता की अट्टालिका खड़ी होती है।
आज स्वाधीन भारत के सम्मुख देशभक्ति एवं देश-प्रेम की समस्या अपनी समस्त विकरालता के साथ मुँह बाएं खड़ी है। सम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, आर्थिक विषमता, पृथकतावाद, नस्लवाद, सामाजिक शोषण तथा संकुचित राजनीति इसके कतिपय प्रमुख रूप है। ये वस्तुतः राष्टघाती विघटनकारी तत्व हैं। जिनकी उपस्थिति नें देश के भीतर में विष फैला दिया है। लगता है देशभक्ति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।अपनी बातों को यदि में राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की नीति के सार के तौर पर पेश करूँ, तो वह कुछ इस तरहं होगी।
अगर देशभक्ति का मतलब व्यापक मानव मात्र का हित चिंतन नहीं है, तो उसका कोई अर्थ ही नहीं है। जिस तरहं देशभक्ति हमें यह सिखाती है कि व्यक्ति परिवार के लिए, परिवार गाँव के लिए, गाँव ज़िले के लिए, ज़िला प्रांत के लिए, और प्रांत देश के लिए मरे, उसी प्रकार किसी देश को आज़ाद इसलिए होना चाहिए कि वह ज़रूरत पढ़ने पर संसार के हित के लिए मर सकें। और उस देशभक्ति का त्याग करना चाहिए, जो दूसरे राष्ट्रों को आफत में डालकर बड़प्पन पाना चाहती है।
देशभक्ति मनुष्य का पहला गुण है। इसके बिना वह संसार में सिर उठाकर नहीं चल सकता, अपने राष्ट्र-राज्य के प्रति अनन्य निष्ठा और प्रतिबद्धता की भावना इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने देश की धरती, प्राकृतिक वातावरण एवं संस्कृति से प्रेम करता है, और अपनी परंपरा व इतिहास में महानता की झलक देखते हुए उसपर गर्व करता है। वह अपने राष्ट्र के हित में अपने सुख और स्वार्थ के त्याग करने को सदैव तत्पर रहता है।
"जीना तो उसी देशभक्त का जीना है,
जिसने यह राज़ जाना,
काम ही है देशभक्त का स्वराष्ट्र के काम आना।"
राष्ट्र बनता है, भूमि, जन, संस्क्रति के संघात से, वही देश एक भोगौलिक इकाई है, और अपनी मातृभूमि के प्रति स्वभाविमान प्रकट करना, सम्मान प्रकट करना और वफादार रहना ही देशभक्ति है तथा इसी देशभक्ति के परिणामस्वरूप राज्य की शक्ति का उपयोग करते हुए, राष्ट्रीय पहचान एवं राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना ही राष्ट्र निर्माण है।
राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब यह राष्ट्र अपने जीवन मुल्यों व परम्पराओं का निर्वाहन करने में सफल व सक्षम होगा। और राष्ट्र सफल तब माना जायेगा जब प्रत्येक देशभक्त अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा। और एक देशभक्त सफल तब कहा जायेगा जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र को चरितार्थ करने में सफल होगा। क्योंकि इतिहास साक्षी है कि राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है। हम अपने राष्ट्र के निर्माण में कितना योगदान देते हैं ? हमारी देशभक्ति ही ये तय करेगी।
यदि आप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में दिए गए अपने मौलिक कर्तव्यों के पालन ईमानदारी के साथ करते हैं तो सही मायनों में आप देशभक्त हैं। फिर चाहे आप नोकर-पेशा हों, शिक्षक हों, या विद्यार्थी आपके कार्य में बरती गई ईमानदारी और सत्यनिष्ठा ही राष्ट्र के निर्माण में योगदान करती है और यही देशभक्ति है जो राष्ट्र की इस भव्य इमारत के निर्माण के लिए चट्टानी नींव का कार्य करती है।
कुरान मजीद में सूरह शम्स,(the sun) की आयत नों व दस में मिलता है कि
"कद अफलाह मन ज़क्काह"
" व कद खाबा मन दस्साहा"
Or "He is succeeded who purifies it,"
"And he has faile who in stills it."
"बेशक़ वो कामयाब हो गया जिसने नफ़्स को पाकीज़ा बना लिया,"
"और वह नमुराद हो गया जिसने इसे आलूद कर दिया।"
देशभक्ति का मतलब वास्तव में मतलब है कि देश के प्रति प्रेम भाव! देशभक्ति तथा देश के प्रति प्रेमभाव के बिना कोई भी देश समुन्नत नहीं हो सकता। देशभक्ति के लिए देश की संस्कृति के प्रेम अनिवार्य है। देशभक्ति भूभाग के प्रति प्रेम, अनुराग तथा श्रद्धा का भाव स्वदेश की जनता को रचना चाहिए। देश की सम्रद्धि के लिए देश की सद्भावना एवं भावात्मक एकता रखना अनिवार्य है।
भारत एक विस्तृत, विकासशील तथा उन्नत व अत्यंत सभ्य देश है। हमारा भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लेकिन अशिक्षा, जातिगत और साम्प्रदायिक भेदभाव, राजनीतिक दलों के अनंतरदायित्वपूर्ण व्यवहार आदि के कारण हम प्रजातंत्र का वह आदर्श रूप प्रस्तुत नहीं कर सके हैं, जो जन-जीवन के लिए मंगलकारी है। हमारा भारत भोगौलिक विविधताओं का देश है, यह भावी भारत फिर से 'वासुदेवकुटुभकुभ' का मधुर नाद कर रहा है, सुनों हर प्रभात की प्रथम रशिम के साथ ही भारतभूमि से मानव-मंगल की कामना के लिए उपनिषद के वाक्य स्वर बनकर उतर रहे हैं। कि
"सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कशिचद् दुःख भाग्भवेत्"
"सभी सुखी होवें, सभी रोग मुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पढ़े,"
अंत में अपनी वाणी को विराम देने से पहले ये कहना चाहता हूँ, कि राष्ट्रव्यापी सामाजिक जड़ता व धार्मिक असहिष्णुता, जातिगत अनुदारता भ्रष्टाचार आदि को उतार फेंकना होगा। इस सम्बंध में मिसाइल मैन हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने कहा था कि "अगर एक देश भ्रष्टाचार मुक्त होता है, तो सुंदर मस्तिष्क का राष्ट्र बनता है"।
हमें इसी विचारधारा को आगे ले जाकर ,सबकों मिलकर, संविधान के परिप्रेक्ष्य में रहकर संघर्ष करना है और समय-समय पर राष्ट्रव्यापी स्तर पर ये आह्वान करना है, हम सब मिलकर संकल्प लें... संकल्प राष्ट्र निर्माण का, संकल्प आत्मसम्मान का, संघर्ष राष्ट्र निर्माण का।
जब राष्ट्र संघर्ष से भर जाता है तभी सच्चे देशभक्त पनपते हैं, और हम हीं वह व्यक्ति हैं, जिनका संघर्ष इस देश के अंधकार को दूर करेगा।
" जब अपना काफ़्ला अज़्मों यकीं से निकलेगा,
जहां से चाहेंगे रास्ता वहीं से निकलेगा,
और जो बाटेगा रोशनी अपनी,
वह आफताब इसी सरज़मी से निकलेगा।"
स्वराष्ट्र ज़िंदाबाद, जय हिंद, जय भारत, पुनः इस स्वर्णिम अवसर पर समस्त पाठकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।






